Baigan Ki Kheti Kaise Kare: बैगन की खेती कैसे करें

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Baigan Ki Kheti Kaise Kare: बैगन की खेती कैसे करें

Baigan Ki Kheti Kaise Kare: बैगन की खेती भारत में लगभग सभी क्षेत्रों में सब्जियों के लिए किया जाता है। जिसमें उत्तर भारत में सबसे ज्यादा बैगन की खेती की जाती है। इसमें विटामिन सी पाया जाता है और सबसे स्वादिष्ट सब्जी भी लगता है। इसीलिए सभी लोग खाने के लिए इसका उपयोग करते हैं। बैंगन की खेती के अधिक पौधे वाले स्थान को खत्म करने के लिए भारत में लगभग सभी क्षेत्रों में प्रमुख सब्जियों की फसल के रूप में किया जाता है।

झारखंड राज्य में इसकी खेती एक अंतर्गत कुल उत्पादन का हिस्सा का लगभग 10% से अधिक होता है। इसे टमाटर के समक्ष भी समझा जाता है बैगन की ग्रीन इकोनामिक में विटामिन पाया जाता है। इसलिए सभी लोग इसकी खेती करते हैं बैगन की प्रति 100 ग्राम खाने योग्य भाग में पाए जाने वाले विभिन्न आहार ऑन में निम्न पाए जाते हैं। जिसमें प्रोटीन, वसा, खनिज तत्व और कार्बोहाइड्रेट उपचार में नीचे इत्यादि पाए जाते हैं।

Baigan Ki Kheti Kaise Kare

बैगन सभी लोगों के सबसे पसंदीदा फसलों में से एक है इस खेती में सभी प्रकार की भूमि पर हो जाती है। बैगन की अच्छी उपज के लिए बलुई दोमट से लेकर भारी मिट्टी जिसमें कार्मिक पदार्थ की प्राप्त मात्रा हो उसमें बहुत अच्छे से हो जाती है। भूमि का पीएच मान 5.5 से 6 के बीच होनी चाहिए झारखंड के ऊपर वार्ड जमीन बैंगन की खेती के अनोखी खोज में की गई है।

इसीलिए झारखंड में सबसे ज्यादा बैगन की खेती किया जाता है। वही उत्तर भारत में इसकी खेती काफी अच्छे से सभी किसान करते हैं। और बाजार में इसकी काफी ज्यादा डिमांड है। सब्जी के लिए इसका उपयोग किया जाता है बैगन की सब्जी के साथ बैगन की भरत चोखा इत्यादि किया जाता है। इसमें बहुत अलग-अलग रंग होते हैं जिसमें सफेद, हरा, गुलाबी, धारीदार इत्यादि प्रकार के रंग के होते हैं।

Baigan Ki Kheti Kaise Kare: बैगन की खेती कैसे करें
Baigan Ki Kheti Kaise Kare

बैगन की उन्नत किस्म

स्वर्ण शक्ति: निर्माण की दृष्टि से उत्तम यह एक सहायक संपादक है। इसकी अंतिम लंबाई लगभग 70-80 है। फल लंबे चमकीले नीले रंग के होते हैं। फल का औसत भार 150-200 ग्राम. के बीच होता है. इस चित्र से 700-750 क्वि./हे. के मध्य औसत उपज प्राप्त होती है।

स्वर्ण श्री: इस चमत्कार के उपाय 60-70 टुकड़े टुकड़े वाले, अधिक चौड़े पत्ते वाले बाले होते हैं। फल नाइट्रोजन मखनिया-सफेद रंग के सर्वाधिक पाए जाते हैं। यह भुर्ता बनाने के लिए सबसे उपयुक्त है। भू-जनित जीवाणु मुरझा रोग के लिए सहिष्णु इस पौधे की निर्मिति 550-600 क्वि./हे. तक होता है।

स्वर्ण मई: इसके उपाय 70-80 लॉन्ग एवं लेंट बैगनी रंग की होती है। फल 200-300 ग्राम वजन के गोल एवं गहरे नीले रंग के होते हैं। यह भूमि से उत्पन्न जीवाणु मुरझा रोग के लिए सहिष्णु मित्र है। इसकी औसत उपज 600-650 क्वि./हे. है। तक होता है।

सुनहरी श्यामली: भू-जनित जीवाणु मुर्झा रोग प्रतिरोधी यह अगेती पौधों के फल बड़े आकार के गोल, हरे रंग के होते हैं। फलों के ऊपर सफेद रंग की धारियाँ होती हैं। इसके पशु एवं फल वरेंटों पर केंटल में पाए जाते हैं। फलों की तुड़ाई 35-40 दिन बाद शुरू होती है। यह बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं। इसका महत्व छोटानागपुर के दूसरे क्षेत्र में है। इसकी उपज क्षमता 600-650 क्वि./हे. तक होता है।

पौधसाला की तैयारी

पौधसाला में सूर्य के प्रकाश के उपचार करना बहुत ही आवश्यक है मिट्टी को सूर्य के प्रकाश से उपचारित करना चाहिए। इसके लिए 5 से 15 अप्रैल के बीच 3 * 1 मी साइज की 20 से 30 फीट ऊंची कैरियर बना देनी चाहिए। और प्रतिवर्ष 20 से 25 किलोग्राम सारी हुई गोबर की खाद खेतों में डाल देनी चाहिए। और खाली क्यारी में नामांकित अच्छी तरह से मिला दें जिससे आपके पौधे को पर्याप्त खाद्य पदार्थ मिल सके मूल वर्ग के कलाकारों की अच्छी तरह से खोज करके इसको प्लास्टिक की चार्ट सेरेमनी कार्मिनती से दबाया जाता है।

इस क्रिया से करी से हवा एवं स्टीम बाहर नहीं निकलती है 40 से 50 तीनों में मिट्टी में रोग जनकों की एक वेश्यावृत्ति की योग्यता काम हो जाती है। और इसका उपयोग एक हेक्टेयर के क्षेत्र में 20 से 25 चिकित्सकों की आवश्यकता होती है।

बीज की बुवाई

बैगन की श्रत्कालीन फसल के लिए अप्रैल अगस्त में ग्रीन स्क्रीन फसल के लिए जनवरी-फरवरी में और बढ़ सरकारी फसल के लिए मिट्टी की बुवाई की जानी चाहिए। क्योंकि यही समय है जब आप बैंगन की अच्छी से खेती कर सकते हैं। और इस समय आप बैगन के बीच मिट्टी में बोते हैं। और इसकी पौधे शाला को अलग जगह फिर से बोलने के बाद आप उसकी देखभाल भी अच्छे तरीके से करना होगा। बैंगन की मात्रा के बराबर 250 से 300 ग्राम एवं संश्लेषण का 200 से 300 ग्राम बी सामग्री होती है। पौधा साल में भोजन से पहले 2 ग्राम प्रति किलोग्राम या वेस्टिन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर के उपचार करें। इस तरह से करने से आपकी बैगन की खेती काफी अच्छा प्रभावित होगा।

तुराई और विपणन

बैगन के फलों के शानदार चमकदार भी अस्तर में तुरई करनी चाहिए तुरई में देरी करने से फल सख्त और बंद कर हो जाते हैं। और फल खराब भी हो जाते हैं जिससे बाजार में उत्पादन का मूल्य नहीं मिल पाता है। इसलिए तुरई के बाद फलों की कटाई करके विपणन के लिए आकार की टोकरी में भरकर ध्यान देनी चाहिए। और ध्यान रहे कि आपको 3 से 4 दिन के अंतराल पर बैगन की तुरई कर देनी चाहिए।

कीट एवं रोग नियंत्रण

यकृत फल को काफी नुकसान पहुंचता है इसके पिल्लू के शीर्ष पर पति के संबंध के स्थान पर छेद किए गए कीड़ों के घोषाल दिए जाते हैं। और उसे अंदर से फेंक दिया जाता है जिससे पानी का विकास रुक जाता है। और बाद में आगे का भाग मुरझा का सूख जाता है। फल आने पर पीलू में छेद कर गोरे को बी को चैट कर जाते हैं।

इसे रोकथाम के लिए आपको कुछ तरह कीटनाशक का उपयोग करना होगा। जिसमें नीम के बीज के रस का चार प्रतिशत की दूरी पर फलों पर किट का प्रकोप दिखा दिया कीटनाशक औषधि की दशा में पूर्ण नियंत्रण न होने। जैसे इंडोसल्फान 700 ग्राम सेंट हेक्टेयर देनी चाहिए जिससे इसका रोकथाम हो सके।

भूमि का चुनाव

इसकी खेती में सभी प्रकार की भूमि शामिल हो सकती है। बैंगन की अच्छी उपज के लिए, बलुई डोमेट से लेकर भारी मिट्टी जिसमें कार्बिनक पदार्थ की पर्याप्त मात्रा हो, उपयुक्त है। भूमि का पी.एच. मान 5.5-6.0 के बीच होना चाहिए और इसमें सीवन का प्रबंधन आवश्यक है। झारखंड की ऊपरवार जमीन बैंगन की खेती के लिए अनोखी खोज की गई है।

उन्नत किस्म 

बैंगन में फलों के रंग और अनुमोदित के आकार में बहुत विविधता पाई जाती है। मुख्यतः फल बेरंग, सफ़ेद, हरा, गुलाबी एवं धारीदार रंग के होते हैं। आकार में भिन्नता के कारण यह फल गोल, कोलोराडो, लंबे समय तक रहने वाले जीवों के आकार के होते हैं। स्थान के अनुसार बैंगन के रंग और आकार का महत्व अलग-अलग देखा गया है। जैसे-उत्तरी भारत में हरे या गुलाबी रंग के गोल से स्ट्राइकर बैंगन की अधिक महत्ता है जबकि गुजरात में हरे रंग के रॉकेट बैंगन की अधिक माँग है। गुलाबी रंग के धारीयुक्त क्षत्रिय बैंगन देश में मध्य स्कॉटलैंड में पसंद किये जाते हैं। झारखण्ड में गोल से स्ट्रॉलर एवं धारीदार हरे रंग के बैगन अधिक पसंद किये जाते हैं।

स्वर्ण शक्ति

निर्माण की दृष्टि से उत्तम यह एक सहायक संपादक है। इसकी अंतिम लंबाई लगभग 70-80 है। फल लंबे चमकीले नीले रंग के होते हैं। फल का औसत भार 150-200 ग्राम. के बीच होता है. इस चित्र से 700-750 क्वि./हे. के मध्य औसत उपज प्राप्त होती है।

स्वर्ण श्री

इस चमत्कार के उपाय 60-70 टुकड़े टुकड़े वाले, अधिक चौड़े पत्ते वाले बाले होते हैं। फल नाइट्रोजन मखनिया-सफेद रंग के सर्वाधिक पाए जाते हैं। यह भुर्ता बनाने के लिए सबसे उपयुक्त है। भू-जनित जीवाणु मुरझा रोग के लिए सहिष्णु इस पौधे की निर्मिति 550-600 क्वि./हे. तक होता है.

स्वर्ण मई

इसके उपाय 70-80 लॉन्ग एवं लेंट बैगनी रंग की होती है। फल 200-300 ग्राम वजन के गोल एवं गहरे नीले रंग के होते हैं। यह भूमि से उत्पन्न जीवाणु मुरझा रोग के लिए सहिष्णु मित्र है। इसकी औसत उपज 600-650 क्वि./हे. है। तक होता है।

सुनहरी श्यामली

भू-जनित जीवाणु मुर्झा रोग प्रतिरोधी यह अगेती पौधों के फल बड़े आकार के गोल, हरे रंग के होते हैं। फलों के ऊपर सफेद रंग की धारियाँ होती हैं। इसके पशु एवं फल वरेंटों पर केंटल में पाए जाते हैं। फलों की तुड़ाई 35-40 दिन बाद शुरू होती है। यह बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं। इसका महत्व छोटानागपुर के दूसरे क्षेत्र में है। इसकी उपज क्षमता 600-650 क्वि./हे. तक होता है.

सुनहरी प्रतिभा

उग्रवादी रूप में पाए जाने वाले बैक्टीरिया मुर्झा रोग के क्षेत्र के लिए यह जीवाणु रोग है। इसका फल बड़े आकार के लंबे चमकीले बैंगनी रंग का होता है। इसके फलों की बाजार में बहुत मांग है। पटाखों की उपज क्षमता 600-650 क्वि./हे. के बीच होता है।

खाद एवं गुणवत्ता

अच्छा निर्माण के लिए 200-250 क्वि./हे. की दर से साडी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त फसल में 120-150 कि.ग्रा. नत्रजन (260-325 कि.ग्रा.ग्रा.), 60-75 कि.ग्रा.ग्रा. प्लांट (375-469 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट) तथा 50-60 कि.ग्रा. पोटाश (83-100 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश) की प्रति हेक्टेयर मात्रा की आवश्यकता होती है।

नटराजन की एक समरूप संरचना और पराश की पूर्ण मात्रा को मिलाकर अंतिम जुताई के समय खेत में डालना चाहिए शेष नटराजन की मात्रा को दो समतुल्य समरूपता में बाँट का भाग का समय क्रमशः 20-25 दिन और 45-5- दिन के बाद अंतिम फसल में देना रहता है. बैगन की संरेखण के लिए न्यूनतम और अधिक पोषण की आवश्यकता होती है। इनके लिए 200-250 कि.ग्रा. नत्रजन (435-543 कि.ग्रा.ग्रा.) 100-125 कि. ग्रा. प्लांट (625-781 कि.ग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट) एवं 80-100 कि. ग्रा. पाराश (134-167 कि.ग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश) प्रति हेक्टेयर की दर से देना होगा।

पौध अंश एवं अवलोकन

बटाई के 21 से 25 दिन बाद प्रयोग के लिए आवेदन तैयार हो जाते हैं। बैगन की अप्रैल शरदकालीन फसल के लिए जुलाई-अगस्त में ग्रीष्मकालीन फसल के लिए जनवरी-फरवरी में एवं वर्षाकालीन फसल के लिए जुलाई-मई में फसल की उत्पत्ति होनी चाहिए। अच्छे निर्माण के लिए दूरी पर जाना आवश्यक है। शरदकालीन एवं ग्रीष्मकालीन फसल को 60 वर्ष की आयु के बीच 50 अध्ययनों के बीच में रखा जाता है।

संश्लेषण के लिए क्वार्टों के बीच 75 दस्तावेज़ एवं प्रयोगशाला के बीच 60 दस्तावेज़ दूरी बनाए रखना होगा। एक शाम के समय की जानी चाहिए और इसके बाद हल्की खेती करनी चाहिए। इस क्रिया से रिवाइंड की मिट्टी का संबंध स्थापति से होता है। बाद में मौसम के अनुसार 3-5 दिन की आवश्यकता के अनुसार चयन किया जा सकता है। फ़सल की समय-समय पर निकाई-गुड़ाई करना ज़रूरी है। प्रथम निकाई-गुड़ाई बीमारी के 20-24 दिन बाद एवं द्वितीय 40-50 दिन के बाद करें। इस क्रिया से भूमि में वायु का संचार होगा।

तुड़ाई एवं विपणन

बैंगन के फलों की शानदार चमकदार V स्तर में तुड़ाई करनी चाहिए। तुड़ाई में देरी करने से फल सख्त और बदरंग हो जाते हैं साथ ही उनके बीज का विकास हो जाता है, जिससे बाजार में उत्पाद का मूल्य नहीं पता चलता। तुड़ाई के बाद फलों की कटाई करके विपणन के लिए आकार की टोकरी में भर कर ध्यान देना चाहिए।

कीट एवं रोग नियंत्रण

तना एवं फल बेधक: यह कीट फल को काफी नुकसान पहुंचाता है। इसके पिल्लू (लार्वा) के शीर्ष पर पत्ती के संबंध के स्थान पर छेद किए गए कीड़ों को घुसेड़ दिया जाता है और उसे अंदर से फेंक दिया जाता है जिससे तानी का विकास रुक जाता है।

Sikhogyan  के बारे में
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