Arhar Ki Kheti Kaise Kare: अरहर एक दलहनी पौधा है जिसकी खेती पूरे देश भर में की जाती है। क्योंकि इसमें सबसे ज्यादा प्रोटीन पाया जाता है, एक शोध में बताया गया है कि लगभग 20 से 22% तक प्रोटीन पाया जाता है। यानी आप 100 ग्राम अरहर का दाल का उपयोग कर लेते हैं तो आपको 20% तक का प्रोटीन प्राप्त हो जाएगा। साथ इस प्रोटीन का पश्चिम मूल्य भी अन्य प्रोटीन से अच्छा होता है।
अरहर की दीर्घकालीन आर्किटेक्चर में 200 किलोग्राम का वायुमंडलीय इंजीनियरों का वर्गीकरण का एक नामिकता एवं वर्गीकरण में वृद्धि होती है। अरहर की खेती सबसे ज्यादा महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में मुख्य रूप से होता है। जहां पर सबसे ज्यादा किस इसकी खेती करते हैं। बिहार में भी इसकी खेती अच्छा से की जाती है और आपको पता ही है। कि सभी लोग अरहर की दाल खाना सबसे ज्यादा पसंद करते हैं इसलिए इसका बाजार में भी काफी अच्छा डिमांड है।
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अरहर की खेती सभी क्षेत्रों में अच्छा आसानी से हो जाती है क्योंकि एक दलहनी पौधा है। और जिस खेत भी खेत में इसकी खेती की जाती है, वहां पर उपजाऊ भूमि हो जाती है। क्योंकि इसके जार में राइजोबियम नमक कीटाणु पाए जाते हैं जो खेतों की उर्वरक शक्ति को सबसे ज्यादा बढ़ावा देते हैं। इसलिए अरहर की खेती में ज्यादा खाद्य पदार्थ देने की जरूरत भी नहीं पड़ती है। काम खाद देने पर भी इसकी अच्छा फसल प्राप्त हो जाता है। और किसानों को काफी ज्यादा मुनाफा हो जाता है।
इसीलिए सभी किसान इसकी खेती करना सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। आज के समय में सभी किसान अपने खेतों में साल में एक बार जरूर अरहर की खेती करते हैं। क्योंकि इसकी खेती भी लंबे समय का होता है। इसीलिए बहुत आसानी से इसकी खेती हो जाती है।

बुवाई के समय
अरहर की खेती आप जून के महीने में कर सकते हैं। इस समय खेती करने से फसल में सिंचाई करने की जरूरत नहीं पड़ती है। क्योंकि इस समय मानसून भारत में उपलब्ध रहता है और आसानी से अरहर की खेती की सिंचाई हो जाती है।
भूमि का चुनाव
अरहर की खेती आप किसी भी खेत में आसानी से कर सकते हैं। खेत में पानी की स्तिरीकरण फसल को भाई नुकसान पहुंचा सकता है। इसीलिए आपको उसे खेत में इसकी खेती करना चाहिए जहां पर जल जमाव न हो।
बीज शोधन
अरहर की खेती 2 ग्राम प्रति किलोग्राम या 3 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से टुकड़ों को खोज और बीच शोध बीजों पर चार से दो तीन दिन पहले करें।
अरहर की उन्नत किस्में
- भारत में अरहर की खेती करने के लिए व सही उत्पादन प्राप्त करने के लिए सही बीज का चुनाव करना बहुत ही जरुरी है। तो आइए जानते है अरहर की उन्नत किस्मों के बारे में-
- RVICPH 2671: ये पहली सीएमएस आधारित भूरी अरहर की शंकर किस्म है। इसकी फसल अवधि 164 से 184 दिनों की होती है , इस किस्म की दाल में प्रोटीन की मात्रा 24.7 % होती है, इसकी औसत उपज 22 से 28 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती हैं।
- पसा 9: इस किस्म की अवधि 260 से 270 दिनों की होती हैं, जिसकी बुआई जुलाई से सिंतम्बर तक की जाती है इसकी औसत उपज 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
- JKM 189: अरहर की इस किस्म में हरी फलिया व काली धारियों के साथ लाल व भूरा बड़ा दाना होता है। ये किस्म देर से बुवाई के लिए भी उपयुक्त हैं। इसकी औसत उपज 20 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
- पूसा अगेती: अरहर की इस किस्म में फसल की लंबाई छोटी व दाना मोटा होता हैं। यह किस्म 150 से 160 दिनों में पक जाती है व कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसत उपज 1 टन प्रति हेक्टेयर होती है।
- ICPL 87: इस किस्म में फसल की लंबाई छोटी होती हैं, सामान्यत: इसकी ऊंचाई 90 से 100 सेन्टीमीटर की होती है। इसकी अवधि 140 से 150 की होती हैं। अरहर की इस किस्म में फलियां मोटी एवं लम्बी होती हैं।
अरहर की खेती के लिए मिट्टी
वैसे तो अरहर की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में बहुत आसानी से की जा सकती है। मगर अच्छी उपज के लिए आपको अच्छे मिट्टी का चुनाव भी करना बहुत जरूरी है। इसका पीएच मान 7 से 8 के मध्य होना चाहिए समतल एवं अच्छी जल निकासी वाली बॉलीवुड मिट्टी में सबसे उपयुक्त मानी जाती है। क्योंकि यह लवानिया और बंजर भूमि नहीं होनी चाहिए। यहां पर श्रारिए भूमि सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अरहर की फसल की सिंचाई
अरहर की खेती में सबसे अच्छा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। क्योंकि जब पौधा फूल देने लग जाए तो एक सिंचाई तब और सिंचाई फलिया आने के समय भी कर देनी चाहिए। मगर जल जमाव नहीं होना चाहिए इस पर भी आपको ज्यादा ध्यान देना होगा।
उर्वरक व खाद का प्रयोग
अरहर की बुवाई करते समय 20 किलोग्राम डीएपी, 10 किलोग्राम म्यूरेट व पोटाश, 5 किलोग्राम सल्फर का इस्तेमाल प्रति हेक्टेयर करना चाहिए। तीन वर्ष में एक बार 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर प्रयोग करने से पैदावार में अच्छी बढ़ोतरी होती है।
निराई-गुडाई
अरहर की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए 20 से 25 दिन में पहली निंराई करे तथा फसल में फूल आने के पहले दूसरी निंराई करें। खरपतवार नियंत्रण रासायनिक विधि से करने के लिए पेन्डीमेथीलिन 2 लीटर प्रति हेक्टेयर में 150 से 200 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के 2 से 5 दिन के बाद डालें।
फसल की कटाई व भंडारण
अरहर की फसल में जब पत्तियां गिरने लग जाय और 80% फलिया भूरे रंग की हो जाए, तब फसल को काटना चाहिए एवं अरहर का बीज जो अच्छी तरह से सूख जाए तभी उनका भंडारण करना चाहिएं।