Makka Ki Kheti Kaise Kare: मक्का की खेती कैसे करें

Makka Ki Kheti Kaise Kare: मक्का एक प्रमुख खाद्य फसल है जो की अनाज की श्रेणी में आती है और इसे भुट्टे की शक्ल में भी खाया जाता है। आज के समय में मक्का की खेती पूरे देश भर में की जाती है। और सभी लोग इस फसल को काफी ज्यादा पसंद भी करते हैं। भारत में मकई खेती एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसीलिए सभी किसान भाई लोग इसकी बहुत अच्छे से खेती करते हैं। सबसे ज्यादा मकई खेती अमेरिका में की जाती है। मक्का को लोग पॉपकॉर्न, सत्तू, भूजा इत्यादि के रूप में उपयोग करते हैं और मक्का की रोटी भी बनाई जाती है।

भारत में मक्का ज्यादा रवि के फसल के साथ बोया जाता है हालांकि कुछ क्षेत्रों में साल भर मक्का की खेती की जाती है। आलू के खेतों में भी मक्का की खेती किया जाता है। जहां पर बहुत ही आसानी से मक की खेती हो जाती है। और इसकी खेती करने में ज्यादा खर्च भी नहीं आता है। इसलिए सभी लोग इसकी खेती बहुत ही अच्छे से करते हैं 65% मक्का का उपयोग पशुपालन एवं पशु आहार के रूप में किया जाता है। साथ ही साथ इससे भी बड़ा व्यवसाय चरक प्राप्त होता है।

Makka Ki Kheti Kaise Kare

औद्योगिक दृष्टि से मक्का में प्रोटीनेक्स, चॉकलेट पेटल्स लोशन कोका-कोला के लिए कौन सिरप आदि बनाया जाता है। बच्चे कौन मक्का से प्राप्त होने वाले बिना पारित भुट्टो को ही कहा जाता है। बेबी कॉर्न का नाम मात्र मूल्य अन्य पुस्तक से भी अधिक है। मकई खेती उष्ण एवं आधार जलवायु परिवर्तन की फसल है। इसके लिए ऐसी भूमि जहां पानी का बहिष्कार उपयुक्त हो और इसकी खेती ज्यादातर जून के माह में किया जाता है। और उसे समय मानसून की शुरुआत होती है जब मक्का की खेती किया जाता है।

Makka Ki Kheti Kaise Kare: मक्का की खेती कैसे करें
Makka Ki Kheti Kaise Kare

मकई खेती की तैयारी कैसे करें

खेत की तैयारी के लिए सबसे पहले पानी डालने के बाद जून माह में हर रोज से जोतना चाहिए। उसके बाद गोबर की खाद अच्छी तरह से खेतों में मिला दे फिर से दो बार जुटा कर दे उसके बाद आपको मक्का की बी वह देनी चाहिए। क्योंकि अब मकई खेती करने लायक आपका भूमि हो चुका है। इसलिए इस समय आप अच्छे से खेती कर सकते हैं। और आज के समय में मक्का का डिमांड काफी ज्यादा हो चुका है। और सभी लोग इसको भुट्टे के रूप में सबसे ज्यादा पसंद करते हैं। रवि के मौसम में कल्टीवेटर से दो बार जुताई करने के बाद दो बार हारो करना चाहिए।

बुवाई का समय

मक्का की बुवाई के लिए फरवरी का प्रथम सप्ताह सर्वोत्तम है बाय 20 फरवरी तक आवश्यक कर लेनी चाहिए। विलंब करने से जिला निकलते समय गर्म हवाएं चलने पर सिल्क तथा परागणों के सूखने की संभावना रहती है। जिससे दाना नहीं पड़ता है उत्तर भारत में मकई खेती में से जून महीने में किया जाता है। जिस समय मानसून का आगमन भारत में होता है। वही अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग समय पर मक्का की खेती की जाती है।

बुवाई की विधि

मक्का की भाई हाल के पीछे उठे हुए बेड पर लाइनों में करें जिससे अच्छे से मकई खेती हो सके। शंकर वह शकुल प्रजातियों की बुवाई 60 सेंटीमीटर की दूरी पर करनी चाहिए। जिसे एक दूसरे पौधे को निकालने में आसानी हो सके उसके बाद पौधे से पौधे की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। मीठा मक्का की वह अन्य प्रजातियों से लगभग 400 मीटर की दूरी पर करनी चाहिए।

सिंचाई

जंतर मक्का की फसल 5 से 6 सिंचाई की आवश्यकता होती है। अगर आप 5 से 6 सिंचाई 10 से 15 दिनों के अंतराल पर कर देते हैं तो अच्छा उपज प्राप्त हो जाएगा। क्योंकि खेतों में नमी होने से मकई खेती में काफी वृद्धि होती है।

उर्वरक

उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण से प्राप्त संस्तुतियों के आधार पर करें। जिस मिट्टी में जिंक तत्व की कमी होती है वहां पर पत्ती की मध्य धारी के दोनों तरफ सफेद धारियां दिखाई पड़ती है, इस कमी को दूर करने के लिए 20 किग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हे. की दर से अन्तिम जुताई के साथ मिटृी में मिला दें। यदि किसी कारणवश मृदा परीक्षण न हो पाया हो तो संकर एवं संकुल प्रजातियों के लिए 80:40:40 किग्रा. नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश प्रति हे. की दर से देना चाहिए। भुट्टे के लिए नत्रजन की आधी और फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय देनी चाहिए। नत्रजन की बची हुई मात्रा बुवाई के 30 दिन बाद देना चाहिए।

फास्फोरस उर्वरक के साथ जिंक सल्फेट को मिलाकर प्रयोग न करें।

खरपतवार नियंत्रण

मक्का की फसल की प्रारंभिक अवस्था में खरपतवारों से काफी क्षति पहुंचती है। इसलिए आपको मकई खेती करते समय खरपतवार नाशक का छिड़काव करना चाहिए। एंट्रीजन रसायन का प्रयोग करके भी आप घर परिवारों का सफलतापूर्वक नियंत्रण कर सकते हैं। 0.1 से 1.5 किलोग्राम एंटीजन 50% यूपी को 800 लीटर पानी में घोलकर बुवाई कर देने से दूसरे और तीसरे दिन अनुकूलन से पूर्व प्रयोग करने से खरपतवार नष्ट हो जाते हैं। और ऐसा आपको दो बार कर देते हैं तो काफी ज्यादा फायदा हो जाएगा। क्योंकि 48 घंटे के अंदर प्रयोग कर खरपतवार नियंत्रण किया जा सकते हैं।

बिज़नेस का समय

आपदा के सीज़न में यह फ़ास्ट मई के फाइनल से जून में डिबेंच पर बॉय होती है। बसंत ऋतु का अंतिम वर्ष फरवरी से अंत मार्च तक बोयी होता है। बेबी कॉर्न दिसंबर-जनवरी को बाकी सारा साल बॉय हो सकता है। रबी और केरला का सीज़न स्वीट कॉर्न सभी के लिए अच्छा है।

फासला

अधिक निर्माण के लिए स्तोत्रों का सही प्रयोग और टोकियो में सही फ़ास्ला होना आवश्यक है।
1.खरीफ की मक्के के लिए:- 62X20 सैं.मी.
2. स्विट कॉर्न :- 60X20 सेमी.
3. बेबी कॉर्न :- 60X20 सेमी. या 60X15 सेमी.
4.पॉप कॉर्न:- 50X15 सेमी.
5.चारा:- 30X10 सै.मी.

बीज की गहराई

बीजाणु को 3-4 सैं.मी. गहराई में बीजें। स्वीट कॉर्न की बिजाई 2.5 सेंट.मी. गहराई में जाएँ।

बिज़नेस का सरलीकरण

बिजनेस हैंड्स से खोदकर या आधुनिक तरीकों से बिजनेस और सीड डेरिल की सहायता से की जा सकती है।

रोग और रोकथाम

इससे तन जमीन के साथ फुल कर भूरे रंग का जल्दी मरने वाला सीन बस करने वाला लगता है। इसे रोकने के लिए पानी खड़ा ना हो निदे और जल बहिष्कार की तरफ ध्यान दें। क्योंकि जल जमाव नहीं होना चाहिए जिससे आपके पौधे में काफी हानि हो सकती है। इस पर आपको ज्यादा ध्यान देना होगा, क्योंकि हरि पढ़ता रहेगा। तभी जाकर पौधा मजबूत होगा और ज्यादा फसल का उत्पादन होगा।

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